मिर्जापुर के बारे में जानकारी :
मिर्जापुर(Mirzapur) विंध्याचल उनमें से एक चाहे आपको पहाड़िया पसंद हो या मंदिर पसंद हो या प्राकृतिक नजारे। शरीर के रोम-रोम को रोमांचित से भरने के लिए पुराने ऐतिहासिक के लिए जिज्ञासा बढ़ाने के लिए धार्मिक भावनाओं को संतुष्ट करने वाले मंदिर गुफाएं। यह तालाब मन को आत्मिक शांति प्रदान करने के लिए यहां पर हर किसी के लिए भ्रमण योग्य कई महत्वपूर्ण स्थान है,उत्तर प्रदेश पर्यटन के दृष्टिकोण से इसीलिए मिर्जापुर उपविधियांचल का विशेष महत्व है।
मां विंध्याचल:
विंध्याचल में मां विंध्यवासिनी का प्रसिद्ध मंदिर मिर्जापुर (Mirzapur) जिले का सर्वाधिक लोकप्रिय विख्यात एवं लोगों के आवागमन के दृष्टिकोण से प्रमुख स्थान है। गंगा नदी के किनारे स्थित इस मंदिर में साल भर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। अगर आप अपने साधन से आ रहे हैं तो वह हमको मंदिर से बहुत दूर छोड़कर पैदल ही मां विंध्यवासिनी के दर्शन के लिए प्रस्थान करना पड़ता है। पौराणिक कथा के अनुसार जब वासुदेव जमुना पार करके कृष्ण को गोकुल में छोड़ और नंद एवं यशोदा की पुत्री को कंस को दे दी।तब कंस द्वारा पत्थरों पर फेंके जाने के बाद मां विंध्यवासिनी ने अपना रूप धारण कर कृष्ण के जन्म एवं कंस के अंत की भविष्यवाणी की और महिषासुर एवं रक्तबीज का वध करने के उपरांत सदैव के लिए विंध्य पर्वतों के बीच से बहने वाली पतित पावनी गंगा के तट पर तीन रूपों में विराजमान हुए। विंध्यवासिनी देवी महाकाली एवं अष्टभुजा देवी श्रीमद् भागवत मार्कंडेय पुराण, महाभारत पद्म पुराण ,शिव पुराण में मां विंध्यवासिनी के विषय में अनेक वर्णन प्राप्त होते हैं।
कई स्थानों पर मां दुर्गा का स्वरूप तो कुछ जगहों पर पार्वती एवं काली का मायावी रुप कहा गया है। धर्म ग्रंथों के अनुसार मां विंध्यवासिनी को भगवान श्री कृष्ण की बहन के रूप में भी पूजनीय माना जाता है। अप्रैल और अक्टूबर के महीने में नवरात्र के दौरान मां विंध्यवासिनी के दर्शन के लिए भारी संख्या में लोग यहां आते हैं। मंदिर के पीछे ही विंध्यवासिनी घाट है जहां पर श्रद्धालु दर्शन से पूर्व गंगा में स्नान करते हैं। मां विंध्यवासिनी के दर्शन के उपरांत 3 किलोमीटर दूर श्रद्धालु मां काली के रूप का दर्शन करने के लिए कालिखो किधर प्रस्थान करते हैं। रास्ते में मां काली गुफा के दर्शनों के लिए आकर्षण का केंद्र होता है। यहां से ढाई सौ मीटर आगे स्थित है।
मां काली के स्वरूप को समर्पित महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल काली खोह मंदिर पौराणिक कथा के अनुसार रक्तबीज नामक राक्षस को ब्रह्मा का वरदान प्राप्त था कि यदि उसके शरीर से रक्त की एक भी बूंद जमीन पर गिरती है। उसमें से लाखों राक्षस पैदा होंगे। देवी देवताओं को रक्तबीज के उत्पात से छुटकारा दिलाने के लिए महाकाली रूप का सृजन हुआ। इस रूप के साथ ही माता ने रक्तबीज के शरीर से गिरने वाली हर बूंद को आकाश की ओर मुख करके पान किया। यहां पर विराजमान प्रतिमा में मां का मुख आसमान की ओर होना इसी पौराणिक कथा का सांकेतिक प्रतीक है। काली खो से 4 किलोमीटर दूर विंध्याचल के पर्वतों पर स्थित है मां अष्टभुजा देवी का मंदिर अगर आप सीढ़ियां नहीं चढ़ना चाहते तो अपने निजी वाहन के द्वारा घुमावदार सड़कों का चक्कर लगाते हुए पहाड़ के ठीक शीर्ष पर पहुंच सकते हैं।
जहां से कुछ सीढ़ियां उतरकर मां विंध्यवासिनी के अष्टभुजा रूप का दर्शन प्राप्त किया जा सकता है या फिर आकाशीय रज्जू मार्ग या एरियल एयरवेज से भी पहाड़ी के चोटी तक पहुंचा जा सकता है। पौराणिक कथा के अनुसार यह वही रुप है जब कंस ने नंद एवं यशोदा की पुत्री को देवकी का आठवां पुत्र समझकर पत्थर पर फेंका था। तब योग माया से उस नवजात शिशु ने आठ भुजाओं वाली देवी का भयानक रूप धारण करके मन में प्राण का भय पैदा किया था और कृष्ण के पैदा हो जाने की भविष्यवाणी हुई थी। इस तरह मां विंध्यवासिनी काली हो अष्टभुजा मंदिर इन तीनों दर्शन उसे एक त्रिकोण परिक्रमा संपन्न होती है। इसके अलावा, तारकेश्वर महादेव, शिवपुर सीताकुंड, रामेश्वर महादेव मंदिर, श्री देवराहा बाबा आश्रम में भी श्रद्धालु दर्शनार्थ जाते हैं। मिर्जापुर (Mirzapur) रेलवे स्टेशन से 35 किलोमीटर दूर चुनार तहसील क्षेत्र में गंगा नदी के किनारे कैमूर पर्वत के उत्तरी दिशा में स्थित है।
मिर्जापुर का किला: मिर्जापुर (Mirzapur) का यह ऐतिहासिक किला जिसे चंद्रकांता चुनारगढ़ चरण दरी भी कहा जाता है। वहीं से 24 में किले पर लगवाए गए एक शिला पत्र पर खोदी हुई जानकारी के अनुसार समय-समय पर कई राजाओं ने अपने अधिकार के दौरान इस किले का निर्माण में सुधार करवाएं। 56 ईसा पूर्व उज्जैन के राजा विक्रमादित्य 1141 से 1191 तक पृथ्वी राज चौहान 1198 में शहाबुद्दीन गौरी 1333 में स्वामी राज 1445 से जौनपुर के मोहम्मद शाह शहर की 1552 सिकंदर लोधी 1529 से बाहर 1530 से शेरशाह सूरी।
और 1536 से अकबर आदि मुगल शासकों का आधिपत्य इसके लिए की ऐतिहासिक प्रमाणिकता को देखते हुए उत्तर प्रदेश पर्यटन द्वारा इसे संरक्षित किया गया है। बनारस का भ्रमण करने वाले पर्यटक चुनार का किला देखने के लिए और स्थानीय लोगों के लिए किला और यहां पर बहती हुई गंगा का अद्भुत दृश्य दूर से दिखाई पड़ने वाला चुनार का पुल एवं विहंगम सूर्यास्त आकर्षण का प्रमुख केंद्र है। ईस्ट इंडिया कंपनी के सबसे चर्चित अधिकारी मार्क वीकली ने जिले को बसाने की शुरुआत गंगा नदी के किनारे स्थित बढ़िया घाट से की थी।
यहीं पर स्थित है मिर्जापुर का प्रसिद्ध घंटाघर जिसका निर्माण 1896 में करवाया गया था। 82.5 डिग्री की देशांतर रेखा मिर्जापुर विभाग से होकर गुजरती है जिसके आधार पर अंग्रेजों के काल में भारतीय मानक समय की गणना की जाती थी, उसने नदी मिर्जापुर को दो भागों में बांटते हुए गंगा नदी में समा जाती है। 1850 ओपन स्कूल के द्वारा मिर्जापुर के दोनों भागों को जोड़ पर यात्रियों एवं व्यापारियों के लिए एक पुल बनवाया। ऐतिहासिक एवं कलात्मक दृष्टिकोण से यह मिर्जापुर (Mirzapur) की एक अमूल्य धरोहर है। इसकी सुंदरता और भव्यता पर्यटकों को यहां पर आने के लिए बाध्य कर देती है। पक्का घाट मिर्जापुर के अमीर व्यापारी भगवान दास 1872 में इस घाट का निर्माण करवाया गया। यह घाट मिर्जापुर के स्थानीय लोगों के लिए एक प्रमुख भ्रमण स्थली है।
यहां पर होने वाली आरती और सूर्यास्त देखने के लिए कई लोग यहां पर आते है।मिर्जापुर (Mirzapur) रेलवे स्टेशन से 16 किलोमीटर दूर घोरावल मार्ग पर स्थित है प्राकृतिक रमणीय स्थल विंडोम फॉल जहां साल भर पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन इस झरने में स्नान करने का आनंद लेने के लिए सबसे बढ़िया मौसम है वह है बरसात के दिनों में यहां पर आना चुनार से राजगढ़ रोड पर लगभग 20 किलोमीटर दूर स्थित है। सिद्धनाथ की दरी को ना छोड़ें । इसके अलावा सिरसी बांध, मेजाबांध, एडवा बांध, खजूरी बांध आज भी प्राकृतिक रूप से लोगों को आकर्षित करते हैं। इस तरह मिर्जापुर (Mirzapur) विंध्याचल अपने आप में धार्मिक ऐतिहासिक एवं आकर्षण के कारण पर्यटन का प्रमुख केंद्र है। आशा है आपको यह ब्लॉक पसंद आया होगा।
थैंक्यू
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