मंदिर जाने के रास्ते :-
konark temple | कोर्णाक मंदिर उड़ीसा के पूरी जिले में स्थित है यह मंदिर आप तीन रास्तों से पहुंच सकते हैं पहला है ट्रेन और दूसरा है बस और तीसरा है एरोप्लेन।l
मंदिर के बारे में जानकारी :- Konark temple Information
konark temple |उड़ीसा के पुरी में भगवान सूर्य को समर्पित यह है कोणार्क मंदिर, कोणार्क मतलब हुआ सूर्य का किनारा उड़ीसा राज्य में यह इकलौता ऐसा ऐतिहासिक स्मारक है जिसे 1984 में यूनेस्को वर्ल्ड हेरीटेज साइट में शामिल किया गया। मंदिर के गहरे रंग के लिए इससे काला पकौड़ा भी कहा जाता है। इतिहासकार मानते हैं कि यह मंदिर 750 से भी ज्यादा साल पुराना है जिसका निर्माण 1250 ई वी मैं नंदराजा नरसिंह देव प्रथम द्वारा कराया गया था।इस मंदिर को पूर्व दिशा की ओर ऐसे बनाया गया है कि सूरज की पहली किरण सीधे मंदिर के प्रवेश पर ही गिरती है। कलिंग शैली में निर्मित इस मंदिर की संरचना व्रत के आकार की है। इस राज्य में कुल 12 जोड़ी पहिए है। एक पहिए का दाया मीटर लगभग 3 मीटर का है। यह मंदिर के मुख्य आकर्षण का केंद्र है क्योंकि यह पर यह घड़ी की तरह समय बताने का काम करते हैं। इसलिए इन पहियों को धूप घड़ी भी कहा जाता है। इन पहियों को इंडियन करेंसी पर भी देख सकते हैं। इसके साथ ही इस रथ में सात घोड़े भी हैं, जिनको सप्ताह के 7 दिनों का प्रतीक माना जाता है। प्रवेश द्वार पर एक और चीज है जो सबका ध्यान आकर्षित करती है और वह है द्वार के दोनों तरफ बनी यह मूर्तियां इन मूर्तियों में सिंह के नीचे हाथी है और हाथी के नीचे मानव शरीर है। इन मूर्तियों के जरिए मानव जीवन की समस्याओं को अनोखे तरीके से पेश किया गया है। यहां सिंह घर का प्रतीक है जबकि हाथी संपत्ति का यह बताने की कोशिश की गई है कि घर और संपत्ति मानव का विनाश कर देते हैं। माना जाता है कि मंदिर का निर्माण समुद्र के किनारे किया गया था लेकिन पिछली 8 शताब्दियों में समुद्र से इसकी दूरी बढ़ती चली गई ,कहां जाता है इसके लगभग 2 किलोमीटर उत्तर में चंद्रभागा नाम की नदी भी बहा करती थी जो अब विलुप्त हो गई है। नदी के वहां होने को भी प्रमाणित किया जा चुका है। मंदिर से जुड़ी एक किंबदंती है कि इसके निर्माण में 1200 कुशल शिल्पी उन्हें 12 साल तक लगातार काम किया लेकिन निर्माण कार्य को पूरा नहीं कर पाए। मुख्य आर्किपैक विशु महाराणा के बेटे धर्म पधारे मंदिर के निर्माण को पूरा किया लेकिन मंदिर के पूरा होने पर उसने चंद्रभागा नदी में कूदकर जान दे दी। कोणार्क मंदिर के बारे में 1 रोचक तथ्य है कि मंदिर के पत्थरों को आपस में जोड़ने के लिए लोहे की चादरों और चुंबक का इस्तेमाल किया गया था। मुख्य मंदिर की चोटी में 52 टन चुंबकीय लोहे को भी लगाया गया था। इन विद्युत चुंबकओं के अनोखे समायोजन के कारण से ही मंदिर में भगवान सूर्य की मूर्ति हवा में झूलते हुए दिखाई देती थी। बताया जाता है कि पुर्तगाली नाविकों ने इस चुंबक को मंदिर से निकाल दिया क्योंकि इस चुंबक के कारण नौका चालक में कठिनाई होती थी। इतिहास और जबरदस्त नक्काशी के शौकीन पर्यटकों के अलावा यहां उनके लिए भी बहुत कुछ है जो यात्रा में कुछ खास और रोचक की तलाश करते हैं। साथ ही आप चाहें तो यहां होने वाले कोणार्क डांस फेस्टिवल का भी दिसंबर के महीने में आकर मजा उठा सकते हैं।
मंदिर जाने का सही समय :-
कोर्णाक मंदिर भ्रमण के लिए सही समय नवंबर से मार्च तक होता है क्योंकि इस समय यहां पर फेस्टिवल चलते हैं जो आप मंदिर के साथ फेस्टिवल भी देख सकते हैं और तो मौसम भी बहुत अच्छा रहता है।
थैक्यू!
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