
उत्तराखंड चोपता का सफर आरंभ : Chopta uttarakhand
उत्तराखंड के एक बहुत ही शांत और बर्फ से ढके हिल स्टेशन चोपता है। चोपता के लिए मेरी यात्रा की शुरुआत हुई नैनीताल से जहां से मैंने ₹ 500 में स्कूटी किराया पर ली। स्कूटी पर बैठते ही किलोमीटर की कैलकुलेशन शुरू हो गई और जब मानचित्र पर देखा तो पता चला कि लगभग 275 किलोमीटर की दूरी तय करनी है और पहाड़ों पर नजरों को फील करते हुए और घुमावदार रास्तों पर केवल दिन के टाइम चलते हुए सेम डे पहुंचना पॉसिबल नहीं था। सुबह सुबह के इस पूरे रास्ते में तलाश थी तो केवल धूप की क्योंकि स्कूटी चलाते हुए ठंड बहुत लग रही थी और इससे बचने के लिए बार-बार कहीं ना कहीं रुकना पड़ रहा था। ठंड ने गाड़ी की रफ्तार कम कर दी थी। इसलिए आज मैंने करणप्रयाग तक ही जाने का डिसीजन लिया और चलते चलते सबसे पहले पहुंचा रानीखेत। रानीखेत में मैं पहुंच चुका हूं और यहां पर मैं एक ड्यूप्वाइंट रुका हूं। इसको बोलते हैं हिमालयन व्यू प्वाइंट यहां से हिमालय की चोटियां दिख रही है। यहां पर यह पूरा जो एरिया है, कैंट एरिया है। रानीखेत में तो वहां पर कैमरा अलाउड नहीं है। रानीखेत 2 घंटे से कम समय में भी आप पहुंच सकते हैं क्योंकि रोड बहुत अच्छी है। रानीखेत की बात करे तो यह मेरे लिए अनजान था और नया भी रानीखेत के बाद मैं थोड़ी देर के लिए कुछ ब्रेकफास्ट करने लगा। और उसके बाद मे वापस निकल पड़ा। और रास्ते मैं कुछ न कुछ नया देखने को मिल रहा था,और रास्ते कह रहे थे कि बस जब भी मौका मिले एक बार वादियों से आकर लिपट जाओ। दोपहर की लगभग 2:30 बज चुके थे और अभी तक कि इस पूरी रोड ट्रिप में मुझे कहीं पर भी थकावट नहीं लगी थी। लेकिन अब जो रास्ते आने वाले थे, वह खराब थे, और यह रास्ते खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहे थे और कहीं ना कहीं मन में यह ख्याल भी आ रहा था कि दिन ढलने से पहले कर्णप्रयाग पहुंच पाऊंगा भी और नहीं। रास्ते के नजारे बार-बार स्कूटी के ब्रेक लगाने को मजबूर कर रहे थे। लगभग 50 किलोमीटर के खराब रास्तों के बाद रोड सही हुए।अब बस नॉनस्टॉप करणप्रयाग की ओर बढ़ गया। क्योंकि रात में पहाड़ों पर जंगली जानवरों का खतरा होता है और लगभग शाम के 6:30 बजे फाइनली करणप्रयाग पहुंच ही गया। अगली सुबह का सफर केवल 70 किलोमीटर का था, लेकिन रोड चमोली तक काफी खराब थी और इसी वजह से रास्ते में मेरी स्कूटी भी स्लिप कर गई। लेकिन चमोली के बाद आता है गोपेश्वर जो कि एक बहुत ही खूबसूरत हिल स्टेशन है गोपेश्वर के बाद जो रास्ते आने वाले थे उसे में बिल्कुल वाकिफ नहीं था और यह लगभग 25 किलोमीटर लगातार चढ़ाई का रास्ता था, जिसमें शुरुआती 10 किलोमीटर, घने, जंगल और बेहद खराब रास्ते रहते थे और झाड़ियों में जरा सी हलचल से लगता था कि कोई जंगली जानवर आ गया है और इस पूरे रास्ते में मुझे एक भी गाड़ी या आदमी नहीं दिखता। चोपता केवल 4 किलोमीटर की दूरी पर रह गया है। ठंड बहुत है और नेटवर्क भी यहां पर नहीं है। क्या बताऊ बिल्कुल ही अलग जगह पर आ चुका हूं। बिल्कुल सुनसान है, कोई भी नहीं है और रास्ते तो मतलब जंगल के इतने डरावने थे ही। लग रहा था जल्दी-जल्दी भगाए वहां से गाड़ी बस और इसीलिए मैं कहीं रुका भी नहीं ज्यादा।चोपता अभी भी लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर है। रास्ते में होटल दिखाई दी यहां पर मैंने रूम पता किया है तो ₹ 800 का है लेकिन यहां से चोपता अभी 2 किलोमीटर आगे तो मैं वहां पर जाऊंगा। तुंगनाथ कॉफी मजेदार है तो इस सीजन की सबसे पहली बर्फ देखने को मिल गई है। तुंगनाथ की ट्रैक करने के लिए और यहां बर्फ देखने को मिलेगी। मेरे पीछे बर्फ की चादर बिछी हुई है। ऊपर जाऊंगा वैसे वैसे आपको और भी बर्फ देखने को मिलेगा। ढेर सारी जैसे जैसे मैं आगे बढ़ रहा था, बर्फ बढ़ती जा रही थी। थकावट लग रही थी लेकिन नजारों को देखने की जल्दी भी थी। और लगभग दोपहर के 3:30 बजे मैं तुंगनाथ टेंपल पहुंची गया, जहां एक अलग ही खुश थी और मंदिर तो इतना प्यारा था और अभी टेंपल बंद है। लेकिन इतने ऊपर इतना शानदार टेंपल देखकर आपका मन खुश हो जाएगा।कोविड-19 के कारण दर्शन नहीं कर पा रहा हूं। बाहर से दर्शन कर के मेरा मन बहुत खुश है। वैसे तो कोविड-19 से बंद था, लेकिन बाहर से ही भगवान के दर्शन करके मैं चला। अब यहां से लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर चंद्रशिला पीक की तरफ जहां इस टाइम कोई भी नहीं जा रहा था, इसलिए रास्ते पता नहीं चल रहे थे, लेकिन वापस आने वाले लोगों से पूछ कर मैं आगे बढ़ चला और जल्दी मुझे चंद्रशिला भी दिखने लगा और अब रास्ते नहीं थे। पैर की दिशा में मैं कहीं भी चल कर आगे बढ़ रहा था और धीरे-धीरे उस जगह भी पहुंच गया। जहां पहुंचने का सपना लेकर मैं चोपता आया था। मैं यहां आज के दिन पहुंचने वाला सबसे लास्ट बंदा था । सच में Chopta uttarakhand का यह सफर उत्तराखंड में मेरे किए गए अब तक के सफर में सबसे बेस्ट था।
थैक्यू!
How is the COVID situation over there?